उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि संसद ही सर्वोपरि है। हर सांविधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द सर्वोच्च राष्ट्रीय हित से जुड़ा होता है।
दिल्ली विवि में एक कार्यक्रम में न्यायिक अधिकारों के अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट को घेरा। उन्होंने कहा कि संविधान कैसा होगा, ये वही तय करेंगे जो चुनकर आए हैं। इसके ऊपर कोई नहीं होगा। संसद सर्वोपरि है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की दो टिप्प्णियों का हवाला दिया। इसमें गोरकनाथ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। जबकि दूसरे केशवानंद भारती मामले में कोर्ट ने कहा था कि यह संविधान का हिस्सा है।
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उन्होंने कहा कि किसी भी सांविधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द राष्ट्र के सर्वोच्च हित से निर्देशित होता है। मुझे यह बात काफी दिलचस्प लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि सांविधानिक पद औपचारिक और सजावटी हो सकते हैं। इस देश में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका चाहे वह सांविधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक के बारे में गलत समझ से कोई भी चीज दूर नहीं हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और टिप्पणियों को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ लगातार सवाल उठा रहे हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका की तरफ से राष्ट्रपति के लिए निर्णय लेने और सुपर संसद के रूप में कार्य करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर परमाणु मिसाइल नहीं दाग सकता।
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उन्होंने न्यायपालिका के लिए ये कड़े शब्द राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहे, कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की तरफ से विचार के लिए रखे गए विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय करने की मांग की थी। इस पर उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।’
सुप्रीम कोर्ट ने कसा था तंज
उपराष्ट्रपति धनखंड और भाजपा नेताओं के बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका पर सुनवाई के दौरान तंज कसा था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा था कि ‘आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे ही, हम पर कार्यपालिका (क्षेत्र) में अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है।’
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