लखनऊ | सरोजनी नगर
सरोजनी नगर के भाजपा विधायक और पूर्व आईपीएस अधिकारी डा. राजेश्वर सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा में पर्यावरण को अनिवार्य विषय बनाने का आह्वान किया है। उन्होंने सोशल‑मीडिया मंच एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी पाँच गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों—जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता‑ह्रास, प्लास्टिक प्रदूषण, जल‑संकट और वनों की कटाई—का उल्लेख करते हुए चेताया कि “अब हम संकट की ओर नहीं, संकट में जी रहे हैं।”“जलवायु संकट की क्लास: विश्व पृथ्वी दिवस डा. सिंह ने अथर्ववेद के मंत्र “माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः” से अपनी अपील की शुरुआत की और कहा कि पर्यावरण‑संरक्षण सरकार की योजना नहीं, समाज का संस्कार होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कक्षा 6 से 12 तक ‘क्लाइमेट साइंस’ अलग विषय बनाया जाए, प्रोजेक्ट‑आधारित मूल्यांकन हो और हर स्कूल का वार्षिक ‘ग्रीन‑ऑडिट’ अनिवार्य किया जाए। साथ ही शिक्षकों के लिए छह‑माह का विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रस्तावित किया। विधायक के अनुसार 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित हो चुका है; वैश्विक औसत तापमान 15.1 डिग्री सेल्सियस, जो पूर्व‑औद्योगिक स्तर से 1.6 डिग्री अधिक है। उनका दावा है कि भारत में 2016 में वायु व जल प्रदूषण से 23 लाख समयपूर्व मौतें हुईं और देश की पूरी आबादी 2.5 के मानक से ऊपर के प्रदूषण स्तर में जी रही है। साथ ही सिर्फ 4 फीसदी जल‑संसाधनों पर 18 फीसदी भारतीय आबादी निर्भर है। स्थानीय समाधानों की ओर इशारा करते हुए डा. सिंह ने बताया कि सरोजनी नगर में 28,000 कपड़े के इको‑बैग तैयार कर छात्रों में बांटे गए हैं। ‘वृक्ष रक्षा यज्ञ’ मॉडल के तहत 200 रुद्राक्ष के पौधे रोपे गए और इस साल एक अगस्त से 2,000 फलदार वृक्ष लगाने की योजना है। ‘एनवायरमेंट वारियर्स’ अभियान के माध्यम से तराई के तीन वनक्षेत्रों में 60 वन‑रक्षकों को साइकिलें तथा 15 कर्मियों को सम्मानित किया गया, जबकि 35 स्कूलों के 500 से अधिक छात्र क्लाइमेट क्विज व वाद‑विवाद के जरिये ‘पर्यावरण योद्धा’ बने। विशेषज्ञों का मानना है कि माध्यमिक पाठ्यक्रम में समर्पित पर्यावरण विज्ञान जोड़ने से व्यवहारिक परिवर्तन की नींव पड़ेगी और परियोजना‑आधारित मूल्यांकन से बच्चे स्थानीय समस्याएँ समझेंगे। शिक्षा‑शास्त्रियों के अनुसार इस कदम से परीक्षा का बोझ भी घटेगा। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद में संशोधन कर इसे शैक्षणिक सत्र 2026‑27 से लागू करने का खाका तैयार किया गया है। जिला स्तर पर हर वर्ष जुलाई‑अगस्त में विद्यालयों का ‘ग्रीन‑ऑडिट’ कराने और शिक्षकों के लिए जनवरी‑जून 2026 के बीच विशेष प्रशिक्षण आयोजित करने का प्रस्ताव है। निष्कर्ष यही है कि जलवायु‑संकट अब भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की सच्चाई है। यदि राजेश्वर सिंह का शिक्षा‑केंद्रित प्रस्ताव अमल में आता है तो उत्तर प्रदेश वह राज्य बन सकता है जहाँ पर्यावरण‑संरक्षण पाठ‑पुस्तक से निकलकर व्यवहार और संस्कार का हिस्सा बनेगा। सवाल अब भी वही—“अगर अनहीं, तो कब?”