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हम हैं किसान” — टांडा से उठी एक सांस्कृतिक अलख, जो अब देश भर में गूंज रही है

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अंबेडकर नगर  ब्यूरो रीपोर्ट

गंगा किनारे, सरयू तट पर बसा टांडा — अंबेडकर नगर की पावन धरती, जो अब तक अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और वस्त्र उद्योग के लिए जानी जाती थी, अब सांस्कृतिक क्रांति की ओर अग्रसर है। इस परिवर्तन की अगुवाई कर रही है एक फिल्म — “हम हैं किसान”, जो न केवल एक सिनेमाई प्रस्तुति है, बल्कि यह धरती से जुड़े उस असली भारत की आवाज़ है जिसे अक्सर सिनेमा की चकाचौंध में अनदेखा कर दिया जाता है।”हम हैं किसान” कोई सामान्य फिल्म नहीं, बल्कि यह एक विचार है। एक ऐसा प्रयास जो मिट्टी की सोंधी खुशबू, खेतों की हरियाली और एक किसान के हृदय की गहराई को दर्शाता है। फिल्म निर्माता रवींद्र वर्मा जी ने जिस आत्मीयता और लगन से इस फिल्म को रचा है, वह उनके अपने संघर्षों, अनुभवों और माटी के प्रति प्रेम का सजीव प्रमाण है,

रवींद्र वर्मा जी का जीवन स्वयं एक फिल्म की पटकथा जैसा है — संघर्षों से भरा हुआ, लेकिन सपनों से रौशन। जहां आज कई कलाकार बड़े अवसरों की तलाश में अपने गांव, अपनी जड़ों को छोड़ देते हैं, वहीं रवींद्र वर्मा जी ने टांडा और अंबेडकर नगर की धड़कनों को देशभर तक पहुँचाने की ठानी। उन्होंने न केवल इस फिल्म को स्थानीय परिवेश में शूट किया, बल्कि स्थानीय कलाकारों को मंच देकर यह भी सिद्ध किया कि प्रतिभा किसी बड़े मंच की मोहताज नहीं होती।

निर्देशक R. L. देवर्षि: निर्देशन में संवेदना और संकल्प

फिल्म के निर्देशक R. L. देवर्षि जी ने जिस सौम्यता और दृष्टिकोण से इस विषय को कैमरे में कैद किया है, वह उन्हें एक संवेदनशील कलाकार के रूप में स्थापित करता है। उनकी निर्देशन शैली में सिर्फ तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक चेतना भी स्पष्ट झलकती है। उन्होंने गांव की गलियों, खेतों की पगडंडियों और किसान के चेहरों पर लिखी कहानियों को जिस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है, वह न केवल सराहनीय है, बल्कि प्रेरणादायक भी। कलाकारों का जीवंत अभिनय: माटी से जुड़ी आत्मा की अभिव्यक्तिइस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसके कलाकार हैं। अधिकतर छोटे कस्बों और गांवों से आए ये कलाकार किसी फिल्मी स्कूल से प्रशिक्षित नहीं हैं, लेकिन उनकी आंखों में सच्चाई, उनके हावभाव में भावनाएं और संवादों में आत्मा की गूंज है। हर किरदार इस कदर जीवंत है मानो आप उन्हें अपने आसपास के जीवन में देख चुके हों।

नायक कोई मसीहा नहीं, बल्कि एक साधारण किसान है, जो अपने पसीने से धरती को सींचता है। यह प्रस्तुति हमारे समाज में मौजूद उन असली हीरो को पहचान दिलाने का एक सार्थक प्रयास है।

“हम हैं किसान” एक फिल्म से कहीं बढ़कर है। यह एक सांस्कृतिक दस्तावेज़ है, जो आने वाली पीढ़ियों को यह बताएगा कि जब-जब हम अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, तब-तब हम नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ते हैं। इस फिल्म के माध्यम से अंबेडकर नगर की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय मंच मिला है।

रवींद्र वर्मा जी का यह योगदान न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि यह पूरे जनपद की पहचान को नये आयाम देने वाला है। उन्होंने अपनी मेहनत और दृष्टिकोण से साबित किया कि अगर जज्बा हो तो छोटे कस्बों से भी बड़े सपने साकार किए जा सकते हैं।

यह फिल्म आने वाले समय में जब भी रिलीज़ होगी, न केवल सिनेमाघरों में देखी जाएगी, बल्कि लोगों के दिलों में भी गूंजेगी। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस आवाज़ का नाम है जो सदियों से उपेक्षित रही। अंबेडकर नगर के लोगों को, कलाकारों को, और विशेष रूप से रवींद्र वर्मा जी को इस ऐतिहासिक पहल के लिए ढेरों शुभकामनाएं। “हम हैं किसान” – यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह हमारी मिट्टी की आत्मा है, हमारी संस्कृति की पहचान है। फिल्म से जुड़ी मुख्य बातें संक्षेप में:

फिल्म का नाम: हम हैं किसान ,निर्माता: रवींद्र वर्मानिर्देशक: R. L. देवर्षि ,मुख्य विषय: ग्रामीण किसान की संवेदनशील जीवन यात्रा ,लोकेशन: अंबेडकर नगर, टांडा एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्र विशेषता: स्थानीय कलाकारों की भागीदारी, भावनात्मक गहराई, सामाजिक सच्चाई

ज्ञान सिंह रिपोर्ट लखनऊ

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